खतरा-खतरा-खतरा... हरियाणा में लोकतंत्र, संविधान, आरक्षण के डर वाली हांडी जल गई? राहुल गांधी को सोचना तो होगा

नई दिल्ली: हरियाणा में रेकॉर्ड बनने जा रहा है। 1 नवंबर, 1966 को पंजाब से अलग होकर हरियाणा नया प्रदेश बना था। तब से प्रदेश में विधानसभा के 14 चुनाव हो चुके हैं। अस्तित्व में आए इस प्रदेश में पहली बार किसी पार्टी की लगातार तीसरी बार सरकार बनने जा

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नई दिल्ली: हरियाणा में रेकॉर्ड बनने जा रहा है। 1 नवंबर, 1966 को पंजाब से अलग होकर हरियाणा नया प्रदेश बना था। तब से प्रदेश में विधानसभा के 14 चुनाव हो चुके हैं। अस्तित्व में आए इस प्रदेश में पहली बार किसी पार्टी की लगातार तीसरी बार सरकार बनने जा रही है। और यह कारनामा कर दिखाया है भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने। वही बीजेपी जिसका भविष्य सभी एग्जिट पोल्स ने अभी दो दिन पहले ही काले अक्षरों में लिखा था। 5 अक्टूबर को हरियाणा विधानसभा की सभी 90 सीटों पर चुनाव संपन्न होने के बाद एग्जिट पोल्स आए तो कांग्रेस की बांछें खिल गई थीं। सभी ने अपार बहुमत के साथ कांग्रेस की हरियाणा में सरकार बनने का दावा किया था। यह भविष्यवाणी की गई थी कि बीजेपी हरियाणा में जवान, किसान और पहलवान की एकजुटता से धोबी पछाड़ खाने वाली है। लेकिन आज असल परिणाम आए तो सारे अनुमान धराशायी। हाथ हालात नहीं बदल पाए, कमल खुलकर खिल गया।

कांग्रेस के लिए दलितों का खुला द्वार बंद हो गया?

मतगणना के पहले दो घंटों तक यही विश्लेषण होता रहा कि कैसे जनता के बीच राहुल गांधी की छवि लगातार सुधर रही है और वो कांग्रेस के कर्णधार बनते जा रहे हैं। विशेषज्ञ बता रहे थे कि राहुल गांधी पर लोग यकीन करने लगे हैं और उनकी बातें मतदाताओं के जेहन में गूंजने लगी है। इन सारे विश्लेषणों का आधार राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बाद लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन में सुधार रहे। विशेषज्ञ दावा कर रहे थे कि राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा और भारत जोड़ो न्याय यात्रा के साथ-साथ विभिन्न वर्ग के कामगारों से मिलने का जो अभियान चलाया, उन सबने मिलकर मतदाताओं के बीच राहुल की गहरी पहुंच हो रही है। कहा जाने लगा कि राहुल गांधी के 'संविधान को खतरा' के दावे ने कांग्रेस के लिए दलितों का द्वार फिर से खोल दिया।


राहुल एंड कंपनी के दावों से यूपी-महाराष्ट्र में दलित डरे तो थे

दरअसल, लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने 'अबकी बार 400 पार' का नारा दिया तो राहुल गांधी समेत विपक्षी गठबंधन के तमाम नेताओं ने इसे संविधान बदलने के इरादे से जोड़ दिया। इसका असर भी हुआ। उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में विपक्षी गठबंधन ने अपेक्षा से बेहतर प्रदर्शन किया। दोनों ही प्रदेशों में दलित मतदाताओं के बड़े वर्ग ने इस डर में बीजेपी का साथ छोड़ दिया कि सच में नरेंद्र मोदी की सरकार 400 सीटों के साथ सत्ता में लौटी तो वह आरक्षण व्यवस्था को प्रभावित करने के लिए संविधान न बदल दे। दलितों के इस डर ने यूपी में बीजेपी को बड़ा झटका दिया जबकि अखिलेश-राहुल की जोड़ी चमक गई। अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी (सपा) ने 37 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया। उधर, कांग्रेस ने भी छह सीटें अपने नाम कर लीं। राहुल गांधी को रायबरेली सीट से तो जीत मिली ही, उनकी छोड़ी हुई अमेठी सीट भी कांग्रेस के खाते में ही गई। पिछले चुनाव में इसी अमेठी सीट पर राहुल गांधी को मात देने वाली कद्दावर बीजेपी नेता और तत्कालीन केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी कांग्रेस पार्टी के ऐसे स्थानीय नेता से हार गईं जिन्होंने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा था।

लोकसभा चुनावों के बाद पहली बार हुए चुनावों में राहुल चित

उत्तर प्रदेश में सपा-कांग्रेस के गठबंधन को मिली जीत का सेहरा अखिलेश और राहुल के सिर सजा। यह सही भी है। लेकिन तभी से यह सवाल भी उठने लगे कि क्या संविधान और आरक्षण को खतरे का डर दिखाने में आगे भी कामयाबी मिलेगी? नरेंद्र मोदी की अगुवाई में एनडीए की लगातार दो बार बनी सरकारों का ट्रैक रिकॉर्ड कभी आरक्षण विरोधी नहीं रहा। जहां तक बाद संविधान और लोकतंत्र पर खतरे के राहुल एंड कंपनी के दावे की है तो इसके पीछे भी कोई ठोस आधार नहीं है। यही वजह है कि बीजेपी इसे चुनावी फायदे के लिए जान-बूझकर किया गया दुष्प्रचार बताया। पार्टी प्रवक्ता और समर्थक कहने लगे कि यह काठ की हांडी है जो बार-बार नहीं चढ़ेगी। विश्लेषकों का कहना था कि लोकतंत्र, संविधान और आरक्षण को खतरे का दावा दुष्प्रचार था तो अगले ही चुनावों के नतीजे इस बात की तस्दीक कर देंगे। अगर राहुल गांधी और विपक्ष का इंडि गठबंधन दलित मतदाताओं को बीजेपी से दूर करते रहने में आगे भी कामयाबी हासिल की तब तो यही साबित होगा कि इन खतरों का डर गहरी जड़ें जमा चुका है।


अब भी दलितों को डर दिखाते रहेंगे राहुल गांधी?

इसी वजह से हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनावों पर सबकी खास नजर थी। इस बात की परख जो होनी थी कि क्या धीरे-धीरे देशभर के दलित वोटर बीजेपी से तौबा करेंगे? अब जब दोनों प्रदेशों के पक्के संकेत आ चुके हैं तो यही साबित हो रहा है कि राहुल गांधी एंड कंपनी का दावा दरअसल दुष्प्रचार ही था। सवाल है कि क्या राहुल गांधी अब भी जेब में संविधान की कॉपी लेकर घूमेंगे और दावा करते रहेंगे कि बीजेपी से संविधान और आरक्षण को खतरा है? राहुल का ट्रैक रिकॉर्ड तो यही कहता है। वो अंबानी-अडाणी पर बार-बार मुंह की खाने के बावजूद वो कभी इसकी रट नहीं छोड़ते हैं। वो अंबानी-अडाणी को देश का लुटेरा बताने के चक्कर में ऐसी-ऐसी दलीलें देते हैं जिनका न कोई सिर होता है, ना पैर। ऐसी दलीलों पर ही बीजेपी उन्हें 'पप्पू' बताती है। हरियाणा में चुनाव प्रचार के दौरान ही राहुल ने जब जलेबी की फैक्ट्री लगाने की बात की तो बीजेपी इसे ले उड़ी। पार्टी ने फिर से राहुल की 'पप्पू' की छवि मजबूत करने में खूब मेहनत की। तो सवाल है कि क्या हरियाणा के मतदाताओं ने राहुल की समझ से मायूस होकर भी कांग्रेस से दूरी बनाई?

रिवाइवल के सपने पर फिरा पानी?

राहुल की छवि का मुद्दा हटा भी दें तो इतना तो सही है कि जिन दलितों के दम पर राहुल, उनकी पार्टी कांग्रेस और इंडि गठबंधन के साथी दल अपने रिवाइवल का सपना देख रहे थे, उस पर फिलहाल तो पानी फिर गया है। आरक्षण का डर दिखाकर बीजेपी से दलितों को दूर करने के प्रयास पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का 'बंटोगे तो कटोगे' की चेतावनी भारी पड़ी है। हरियाणा में तो दलितों ने ही बीजेपी को न सिर्फ बचाया है बल्कि लगातार तीसरी बार सरकार बनाने का अभूतपूर्व मौका दिलाया है। राहुल गांधी का हाल 'पुनर्मूषको भव' जैसा दिख रहा है। राहुल के पास आगामी महाराष्ट्र चुनावों में फिर से मौका मिलेगा कि वो यह साबित कर सकें कि 'खतरा-खतरा-खतरा' वाले प्रचार की हांडी भले हरियाणा में थोड़ी जली हो, लेकिन वक्त रहते उसकी मरम्मत की जा चुकी है और वह फिर से चढ़ गई, आगे भी चढ़ती रहेगी।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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